Wednesday 15 February 2012

कहानी की डिमांड पर ग्लैमर से परहेज़ नहीं - राखी त्रिपाठी



अमूमन भोजपुरी फिल्मों में हीरोइनों की अहमियत शो-पीस से ज्यादा कुछ नहीं होती... मज़बूरी में ही सही अभिनेत्रियों ने भी इस हालात को नियति मान लिया है... लेकिन राखी त्रिपाठी हालात से समझौता करने के बजाय उसे बदलना चाहती है... बकौल राखी अगर हीरोइनों की शो-पीस वाली स्थिति में बदलाव नहीं आया तो इसका खामियाज़ा भोजपुरी सिनेमा को ही उठाना होगा... सिनेमा का मिजाज़ और अंदाज़ तेज़ी से बदल रहा है, अब दर्शक अभिनेत्रियों को पर्दे पर केवल कुल्हे-कमर मटकाते और पेड़ों की टहनियां पकड़ कर गाना गाते नहीं देखना चाहते.. बल्कि फिल्म की कहानी के ट्विस्ट और टर्न में भी उनकी पूरी भागीदारी चाहते हैं...
कॉलेज के दिनों से ही विद्रोही स्वाभाव की रही राखी त्रिपाठी ग्लैमर को कामयाबी का पैमाना मानने को तैयार नहीं... राखी कि माने तो कहानी की डिमांड रहे तो उन्हें ग्लैमर दिखने से परहेज़ नहीं, लेकिन ज़बरदस्ती सिचुएशन ठूंस-ठूंसकर अंग प्रदर्शन का चलन उन्हें मंज़ूर नहीं... वैसे राखी इंडस्ट्री के कई और रिवाजों से इत्तेफाक नहीं रखती.. बावजूद इसके उनकी कामयाबी का सफ़र बिना रुके जारी है... हालही में उनकी मैथिलि फिल्म "सजना के अंगना में सोलह श्रृंगार" और भोजपुरी फिल्म "अचल रहे सुहाग" ने कामयाबी का परचम फहराया है... इन फिल्मों को एक तहरीक के रूप में पेश करते हुए राखी कहती हैं कि इन दोनों ही फिल्मों में परम्परा और मूल्यों को ज्यादा तवज्जो दी गई थी.. फिर भी दर्शकों ने इसे भरपूर प्यार दिया.. ज़ाहिर है इन फिल्मों से उन फिल्ममेकरों की आँखें ज़रूर खुलेंगी जो सेक्स और भौंडेपन को ही सफलता की कुंजी मानकर फ़कीर की तरह लकीर पीट रहे हैं... आगामी दिनों में राखी त्रिपाठी 'चुन्नुबाबू सिंगापुरी', 'काली', 'कोठा', 'चालबाज़ चुलबुल पांडेय' और 'जीजाजी की जय हो' जैसी फिल्मों में नज़र आएँगी

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