Thursday 1 March 2012

बोलीउड़ करे तो जायज़ ,भोजउड़ करे तो नज़ायज़ :- आशि तिवारी

हिन्दी फ़िल्मो का क्रेज़ आज भारत मे ही नही बल्कि पूरे विश्वा मे कई साल पहले से पूरे जोरो पे है, एक यही फ़िल्मे कही एक जगह की छेत्रिया नही हो के पूरे भारत मे लगभग हर एक थियेटर मे रिलीस होती है,और लोग उसे बड़े चाव से देखते है चाहे वो किसी भी राज्य का हो!
अब करे साउथ की फ़िल्मो की बात तो ये किसी से नही छुपा है की इन फ़िल्मो का एकशन लोगो का दिल छू जाता है! ये फ़िल्मे रीजनल भाषा मे होती है जिनको हिन्दी मे डभ तो किया ही जाता है साथ मे अब भोजपुरी मे भी डभींग शुरू हो गई है! जिस का प्रसारण कई जाने माने टीवी चॅनेल सीधा प्रसारण कर रहे है!
अब मुद्दा की बात ये है की भोजपुरी फ़िल्मो को उतना सम्मान क्यो न्ही जितना बोलीउड़ या साउथ की फ़िल्मो का है, आज मुंबई , देल्ही और भी कई बड़े बड़े शहरो मे भोजपुरी फ़िल्मो को बड़ी ही छोटी नज़रो से देखा जाता है
क्या ये उचित है ?
क्या भोजपुरी फ़िल्मे करने वाले इंसान नही है?
क्या वो कलाकार नही है ?
क्या उनकी कला का सम्मान नही करना चाहिए?
ये कहा तक जायज़ है ! कलाकार की एक ही जाती होती है वो है कल, एक भोजपुरी भासी या भोजपुरी फ़िल्मो से जुड़े रहने के कारण उन्हे अजीब नज़रो से देखना कही से उचित नही है !
आज अगर कोई कहता है की वो भोजपुरी फ़िल्मो मे काम करता है तो बहूत से लोग ऐसे कहते है की
"भोजपुरीरीरीरीरीरीरीरीरीरीरीरीरी मे " हा हा हा हा हा , ऐसा प्रतीत होता है जैसे उस इंसान ने ये बता के ग़लती कर दी है की वो भोजपुरी फ़िल्मो से जुड़ा है!
ये किसी से छुपा न्ही है की आज बहूत से ख्याति प्राप्त अभिनेता, निर्देशक , और यहा तक की नेता भी भोजपुरी प्रदेशो से ही जुड़े हुए है!
लोग अपनी तरफ नही देखते और कहते है की भोजपुरी फ़िल्मो मे फूहड़ता है , डबल मीनिंग होता है !!!!!!
अगर ऐसा है तो इंसान को चाहिए की उस डबल मीनिंग को ना समझ के सीधा पॉज़िटिव मीनिंग ही समझे, लेकिन लोग अपना दिमाग़ दूसरी तरफ दौड़ाएंगे तो कहा तक उचित दिखेगा!!!????
कोई चीज़ अच्छा है या बुरा ये इंसान के सोच पे आधारित है! जैसा सोचता है इंसान वैसा अपनी नज़रो मे पेश कर देता है !
आज वही अगर बोलीउड़ मे मल्लिका शेरावत ने १८ चुंबन दृश्य बेड सीन दिए तो कोई बात नही! और तो और ठीक वैसे ही अगर तनु श्री- इमरान हासमी के साथ ऐसा सीन दे की लोग कुर्सी छोड के उठने पे मजबूर हो जाए तो कोई बात नही! आज विधया बालन ऐसे उत्तेजित दृश्य दे दे की लोगो की मर्दानगी अंदर से झकझोर जाए तो कोई बात नही!!!!!!!!
लेकिन वही अगर कोई अभिनेत्री भोजपुरी मे कर दे तो लोग उसे फूहड़ता का नाम देते है !
ये कहा तक उचित है ?
लोगो को चाहिए की अपने सोच को बदले, प्रकृति का निया ही बदलाव है! समय के साथ लोगो को चीज़ो को स्वीकार करनी चाहिए ना की बाहिसकार?
आज भोजपुरी सिनिमा की चर्चा विदेशो मे भी हो रहा है! लोगो को चाहिए की वो भोजपुरी फ़िल्मो के तरक्की मे साथ दे , भोजपुरी कलाकारो की कला को प्रोत्साहन दे!

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