अपने अनप्रोफेशनल रवैये और दिशाहीनता के कारण भोजपुरी सिनेमा भले ही इन दिनों आलोचना के केंद्र में हो लेकिन इसकी समृद्ध परम्परा और मिठास के मुरीद भी कम नहीं हैं. ऐसी ही एक अदाकारा हैं सुप्रेरणा सिंह जो तमिल, तेलगु, राजस्थानी , मराठी और उड़िया फिल्मों में अपनी खास पहचान बना लेने के बावजूद भोजपुरी फिल्मों में अपनी खास पहचान बनाना चाहती हैं.
मूलतः उत्तर प्रदेश के इलाहबाद की रहनेवाली सुप्रेरणा सिंह राजकुमार पाण्डेय की भोजपुरी फिल्म ‘सात सहेलियां’ से भोजपुरी फिल्मों में कदम रखने से पहले ही साउथ की फिल्मों में एक मुकम्मल पहचान बना चुकी थीं. लेकिन अपनी मातृभाषा की कशिश ही थी जो उन्हें यहाँ खींच लायी. ‘सात सहेलियां’ के बाद ‘लहरिया लुटा ए राजा जी’ कामयाब रही और इसके साथ ही सुप्रेरणा के कदम भोजिवुड में मजबूती से जम गए. इन दिनों ‘राजा जी’ , ‘कलुआ भईल सयान’ और ‘गजब सीटी मारे सैयां पिछवाड़े’ जैसी फिल्मों में काम कर रही सुप्रेरणा इंडस्ट्री की भेड़चाल से दूर रहना ही पसंद करती हैं. भोजिवुड में उनकी पहचान अपनी शर्तों पर काम करनेवाली हीरोईन के तौर पर भी है. सुप्रेरणा के लिए फिल्मों की गिनती बढ़ाने से ज्यादा अहम है उसकी गुणवत्ता पर ध्यान देना और इसके लिए सही सेटअप और सही फिल्मों का चुनाव जरुरी है.
सुप्रेरणा सिंह का करियर इन दिनों पूरे रफ़्तार पर है. सुप्रेरणा सिंह ने हाल ही में रमाकांत प्रसाद की ‘जानवर’ साईन की है. इस फिल्म में उनका रोल काफी चुनौतीपूर्ण है जिसके कई शेड्स है.ज़ाहिर है एक एक्ट्रेस के तौर पर सुप्रेरणा के लिए यह एक बड़ा मौका साबित होगा.
सुप्रेरणा की ख्वाहिश है कि दर्शक उन्हें एक अच्छी अभिनेत्री के रूप में याद रखें. कामयाब और अच्छी अभिनेत्री के बीच के फर्क को तो सुप्रेरणा भी बखूबी समझती होंगी. इसलिए अगर वो कामयाबी के मुकाबले अच्छी एक्टिंग को तरजीह देती हैं तो उनकी ये ख्वाहिश दाद देने के काबिल है
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