आज के भोजपुरी गीत तो देखे. भाई लोगो ने कल्पनाशीलता के ऐसे ऐसे बाण छोड़े है कि माथाथाम लेने का मन करता है. आज के भोजपुरी गीतों का चोली और लहंगा से इतना गहरा रिश्ता है कि पूछिए मत. हर गीत में चोली लहंगे का जिक्र जरूर है और आलम ये है कि “मोरे लहंगा में आवे रे भूकम्प “, “लहंगा में सबसे बड़ा ATM ” , “हमरे लहंगा में मीटर लगा दी राजाजी ”, “तोहारलहंगा उठा देब रिमोट से” इत्यादि गीतों कि श्रंखला शुरू हो गयी और ये किसी को नहीं पता कि ये कहा जा के रुकेगा. अगर कल्पनाशीलता में कुछ कसर रह गयी हो तो “हाई पॉवर के चुम्बक बाटे इनका दुप्पटा के पीछे ” या “कसम से देह रसगुल्ले बा” जैसे गीतों ने ये कमी भी पूरी कर दी. अभी कुछ महीनों पहले अपने गाँव मै गया तो वहा जब भी किसी मोबाइल पे आप काल करिए तो ये गीत जरूर सुनने को मिलता था “मिस काल मारत तारु किस देबू का हो”. गाँवों में किसी और स्तर पर प्रोग्रेस हुई हो या ना हुई हो पर भैसचराते हुए नंगे बदन लोगो के पास एक अच्छा और महंगा मोबाइल सेट जरुर मिल जाएगा जिसमे इस तरह के गीत आपको बजते हुए सुनाई पड़ जायेंगे. अगर आप गाँव में किसी तरह इन गीतों को इलेक्ट्रोनिक माध्यम से सुनने से रह गए तो चिंता ना करे कोई बहुत ही कम उम्र का बच्चा आपको वोही गीत आपको लाइव सुना देगा!!!
तकलीफ की बात ये है कि आप चाहे तो भी कुछ नहींकर सकते. किसी के माता पिता से आप शिकायत करे तो या तो वो खीस निपोर के रह जाते है या फिर उल्टा आपको ही एक अच्छा खासा लेक्चर सुनादेंगे. गाँव में जरा सी बात का बतंगड़ बनते देर थोड़ी ना लगती है. खैर मै गीतों के स्तर में गिरावट की बात कर रहा था. लोकगीतों की हमारे यहाँ समृद्ध परंपरा रही है और अवधी, बृजभाषा या भोजपुरी के गीतों की धूम रही है जिनमे एक से बढ़कर एक गीत जीवन के हर मोड के लिए है बिरह से लेकर मिलन तक. यहाँ तक कि मौसमके हिसाब से भी लोकगीत है जैसे होली, चैती और कजली. लोकगीत गायकों जैसे शारदा सिन्हा, भरत शर्मा, मनोज तिवारी और बालेश्वर यादव जैसे गायकों ने इन गीतों को एक नया ही आयाम दिया है. अगर मै ये कहू तो गलत नहीं होगा कि देश के आप किसी कोने में चले जाए तो तरह तरह के लोकगीतों की भरमार है और इनके गाने वाले भी इनको खूब रस में डूबकर गाते है. इन सब को देखते हुए इन अश्लील गीतों का हर तरफ छा जानामुझे बहुत खलता है. आप आंचलिक क्षेत्रो में किसी भी सीडी शॉप पे जाए तो आपको एक भी ढंग केगानों की सीडी नहीं मिलेगी पर हा ऐसे बेकार के गीतों की वो हज़ार सीडी आपको वो दुकानदारथमा देगा. अब इन गीतों की बाढ़ क्योंइतनी आ गयी वो तो राम जाने पर चलते चलते मै ये दो अपनी पसंद के भोजपुरी गीत जरूर सुनवाना चाहता हू. सुनने से डरे मत इनमे लहंगा ,चोली औररसगुल्ले का जिक्र नहीं. निश्चिंत रहे आपलोग. मै यही तो बताना चाहता हू कि इस तिकड़ी के अभाव के बाद भी गीत जियरा को मस्त कर सकता है
तकलीफ की बात ये है कि आप चाहे तो भी कुछ नहींकर सकते. किसी के माता पिता से आप शिकायत करे तो या तो वो खीस निपोर के रह जाते है या फिर उल्टा आपको ही एक अच्छा खासा लेक्चर सुनादेंगे. गाँव में जरा सी बात का बतंगड़ बनते देर थोड़ी ना लगती है. खैर मै गीतों के स्तर में गिरावट की बात कर रहा था. लोकगीतों की हमारे यहाँ समृद्ध परंपरा रही है और अवधी, बृजभाषा या भोजपुरी के गीतों की धूम रही है जिनमे एक से बढ़कर एक गीत जीवन के हर मोड के लिए है बिरह से लेकर मिलन तक. यहाँ तक कि मौसमके हिसाब से भी लोकगीत है जैसे होली, चैती और कजली. लोकगीत गायकों जैसे शारदा सिन्हा, भरत शर्मा, मनोज तिवारी और बालेश्वर यादव जैसे गायकों ने इन गीतों को एक नया ही आयाम दिया है. अगर मै ये कहू तो गलत नहीं होगा कि देश के आप किसी कोने में चले जाए तो तरह तरह के लोकगीतों की भरमार है और इनके गाने वाले भी इनको खूब रस में डूबकर गाते है. इन सब को देखते हुए इन अश्लील गीतों का हर तरफ छा जानामुझे बहुत खलता है. आप आंचलिक क्षेत्रो में किसी भी सीडी शॉप पे जाए तो आपको एक भी ढंग केगानों की सीडी नहीं मिलेगी पर हा ऐसे बेकार के गीतों की वो हज़ार सीडी आपको वो दुकानदारथमा देगा. अब इन गीतों की बाढ़ क्योंइतनी आ गयी वो तो राम जाने पर चलते चलते मै ये दो अपनी पसंद के भोजपुरी गीत जरूर सुनवाना चाहता हू. सुनने से डरे मत इनमे लहंगा ,चोली औररसगुल्ले का जिक्र नहीं. निश्चिंत रहे आपलोग. मै यही तो बताना चाहता हू कि इस तिकड़ी के अभाव के बाद भी गीत जियरा को मस्त कर सकता है
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