Tuesday 7 February 2012

मनोज तिवारी का बचपन, जानिए उन्हीं की जुबानी



याद है बाबूजी की छड़ी

भोजपुरी गीतों और फिल्मों की चर्चा छिड़ेगी तो मनोज तिवारी पर ही आकर रुकेगी। कैसा था इस प्रसिद्ध गायक, अभिनेता और लेखक का बचपन, जानिए उन्हीं की जुबानी:
मैं बचपन में शरारती नहीं था। मां बोलती हैं कि मैं हमेशा से सहनशील रहा हूं, लेकिन बचपन में ही मुझे बीड़ी की लत लग गई थी। तब कोई सात साल की उम्र थी मेरी। मुझे आज भी वह वाकया याद है। नहर के किनारे छुप कर मैं बीड़ी पी रहा था कि तभी ऊपर से बाबूजी की छड़ी पड़ने लगी। उस दिन का दिन है और आज का दिन है मैं किसी किस्म का नशा नहीं करता। जब ऐसा मौका आता है तो लगता है जैसे बाबूजी सामने खड़े हैं।
खेलों में रही खूब दिलचस्पी
खेलों से तो मेरा शुरू से ही लगाव रहा है। गांव में कबड्डी खेलता था। गुल्ली-डंडा और कंचे खेलने में कब दिन गुजर जाता था, पता ही नहीं चलता था। फुटबॉल और क्रिकेट में मेरी काफी दिलचस्पी रही। क्रिकेट तो विश्वविद्यालय में आने तक चला।
स्कॉलरशिप पर की पढ़ाई
पढ़ाई-लिखाई में अव्वल ही रहा। हमेशा स्कॉलरशिप पाता था। बिहार स्कॉलरशिप एक्जाम पास किया था मैंने। सिक्स्थ क्लास के बाद मैंने घर से पैसा नहीं लिया, उल्टे देता ही था।
गुरुजी ने उल्टा लटकाया
स्कूल में जब भी मुझे सजा मिली तो स्कूल नहीं जाने के लिए, किसी शरारत के लिए नहीं। एक बार मैं चार-पांच दिन तक स्कूल नहीं जा पाया तो सजा के डर से और भी कई दिन तक नहीं गया। लेकिन स्कूल तो जाना ही था। सजा भी मिलनी ही थी। जब मैं स्कूल पहुंचा तो गुरुजी ने उल्टा लटका दिया। मुर्गा भी बनाया।
दीवारों पर कलाकारी
गाने के अलावा मैं पेंटिंग भी अच्छी कर लेता हूं। गांव की कोई दीवार ऐसी नहीं थी जहां मैंने अपना हुनर न दिखाया हो। खाली दीवार देखते ही मैं घोड़ा, हाथी बना डालता था। स्केच बनाने में महारथ हासिल थी मुझे।
स्कूल का हीरो
अपने स्कूल का हीरो होता था मैं। एक बार मैंने स्कूल में प्रधानमंत्री का चुनाव लड़ा था और जीता भी था। शनिवार की सांस्कृतिक गोष्ठियों में मेरी कविताएं छाई रहती थीं। जब खुलकर तारीफ होती थी मेरी कविताओं की तो मुझे भी लगता था कि कुछ बात तो जरूर है। कविताओं के इस शौक ने ही मुझे गीत लिखने और गाने के रास्ते पर आगे बढ़ाया।

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